गंगाजल सा पवित्र है प्यार का बंधन ,
आपकी ही बातें करती है हर धड़कन।
रक्त सम्बंध नहीं आपसे मेरा कोई,
आपके मन से कैसे जुड़ गया मन?
अगाध प्रेम हो गया है आपसे ही,
आत्मा से आत्मा करती है वंदन।
जीवन का प्रारंभ और अंत आपसे है,
आपकी उपस्थिति है जैसे चंदन।
श्वांसों की माला में प्रतिक्षण प्रिय,
करते हैं प्राण प्यारे का अभिनन्दन।
आप ही प्रेम की परिभाषा हो,
आपके रूप में है अद्भुद आकर्षण।
बिन डोर के बंध गया है हृदय,
तन,मन,जीवन आपको अर्पण।
हृदय की पुकार हृदय सुनता है,
निष्ठा और प्रेम का यही समर्पण।
हर समस्या का समाधान आपसे ही,
आपसे सुगम बन गया है जीवन।
आप हो स्नेह का गहरा सागर
प्रेम सुधा से पूरित जैसे सावन।
आत्मा पर एकाधिकार आपका है,
सर्वत्र होते हैं मुझे आपके ही दर्शन।
विरह वेदना में झुलस रहा है गात,
आकर कर दो नेह-पीयूष का वर्षण।
प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश