है देश चलाता नेता,
घर चलाता है बेटा।
निकम्मा अगर दोनों,
रहता चुप जन्मदाता।
धीरे पकड़ वह पल्लू,
बनाता सबको उल्लू।
सलामत बचे न कुछ,
मिले ठुल्लू ही ठुल्लू।
बेटा से घर पानी – पानी,
नेता से देश पानी-पानी।
भींगे बाप अनेकों बार,
लगाये आग बेटा पानी।
बेटों का दिल काला खूब,
बाप रहा है किये पर उब।
पानी – पानी घर हुआ है,
पूरा ही किला रहा है डूब।
नेता देखो गया बदल,
देश के उपर रखा दल।
दल के दल – दल में है,
वतन रहा लो अब जल।
बोले फटकन अब सूप से,
न रहना बेहतर खुद चुप से।
दम से आएगा जिगर जरूर,
हिकमत बोलेगा तब भूप से।
विनसा “।विवेका”
( जमशेदपुर, झारखंड )