गृहस्थ में जो जीवन जीता,
वह मानव बड़ा महान है।
पालन- पोषण सबके करते,
जग में करते उनके सम्मान।।
गृहस्थ आश्रम मैं जो रहता,
है पावन गंगा के समान।
मात- पिता ,भाई, बंधु संग,
जीवन में नहीं होता अपमान।।
अपने दायित्वो को निभाते,
गृहस्थ जीवन की है पहचान।
सब बोझ उठाते परिवारों के,
उनके जग करता है सम्मान।।
ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ ,सन्यास,
इनसे आगे है गृहस्थ आश्रम।
सभी जिम्मे दारियां होती है,
करते रहते है कठिन परिश्रम।।
गृहस्थ जीवन है सुखदाई,
कभी नहीं होती है दुखदाई।
सोच समझ करके जो चलते,
जीवन में अपार खुशियां छाई।।
देवीदीन चंद्रवंशी
तहसील पुष्पराजगढ़
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश