“मन का डर “

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने

बड़ी आगे हिम्मत से मैं तो,

घर को वापिस आने के लिए तोड़ी

बड़ी हिम्मत से मैंने तोड़ी,

यूँ हंसी से फिर से रिश्ता जो हैँ बनाना..

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने

बड़ी आगे हिम्मत से मैं तो ,

दूर से घर दिख रहा था

रास्ता लम्बा लग रहा था,

बढ़ती आगे गई मैं कसम से

आंसू, चुप्पी को तोड़के अपने…

निकली घर को वापिस आने के लिए,

अचानक ही हुआ कुछ ऐसा

पीछे से आवाज़े आने लगी,

भागने लगी मैं उनसे डर के 

दौड़ कर घर को जाने लगी,

पीछे मुड़कर ना मैंने देखा

डर के थक्कर भाग रही थी,

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने

घर को वापिस आने मैं लगी ,

रास्ते में कोई राही ना दिखा,

रास्ता पूछा जब ज़ोर से मैंने

हवा में हाथ थे मुझको दिख रहे,

कोई गुरु ना था साथ में मेरे

टप-टप आंसू टपक रहे थे,

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने

घर को वापिस आने मैं लगी ,

बचपन कितना अच्छा था

अपनों का पास में डेरा था,

बड़े हुए है जबसे हम

चुप्पी मन को घेरने लगी,

कर दिया दूर इसने मुझको

घर के भी करीब ना जाने देती,

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने

घर की तरफ मैं दौड़ लगाने लगी,

यूँ रास्ते जो खोजे थे मैंने 

अंधेरा उन पर बहुत ही था,

अकेली पड़ गई रास्तो में मैं तो 

रोने चिल्लाने लगी ज़ोर से मैं,

वापिस मुझको घर पर छोड़ दो

चिल्लाने लगी उन अंधेरों पर मैं,

हँसी छीन ली तुमने मेरी

बड़ा कितना कर दिया मुझको,

ज़ोर से डांटा अँधेरे को मैंने

हिम्मत जगाईं मन की मैंने,

डर कर वो तो ढलने लगा

किरण हल्की हल्की मुझको दिखने लगी,

जैसे ही हिम्मत से बड़ी आगे अँधेरे में

चुप्पी मेरे मन की टूटने लगी

घर को मैं तो वापिस आने लगी,

डर भी लग रहा था अंधेरों से मुझको 

आवाज़े पीछे से पुकार रही थी,

मन को भर्मित कर फिर से मुझको

अँधेरे की तरफ मुझको ले जा रही थी,

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने

हिम्मत से आगे बढ़ने की कोशिश की,

चुप्पी तोड़ी मन की मैंने 

घर को वापिस मैं आने लगी,

चुप्पी तोड़नी है मन की अपनी

घर को वापिस आना ही है !

-नेहा जैन

दिल्ली .