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बयानबाज़ी के बाज –
ख़ूब उड़ा लिए तुमने ;
अब काम की भी कुछ बातें हो जाएं ।
सुबह से बयानों की जो झड़ी लगाते –
वह रात तक भी कभी नहीं रुकती ।
जिन्हें सुन – सुन पक गए कान हमारे –
पर ज़बान तुम्हारी कभी न थकती ।
जुमलेबाज़ी के बबल –
ख़ूब उड़ा लिए तुमने ;
अब काम की भी कुछ बातें हो जाएं ।
आश्वासनों की रोज़ हवा पिलाई तुमने –
पर उससे कभी न पेट भरा ।
नारों के मोदक खा – खाकर हम थके –
फिर भी थाल सजा तुमने धरा ।
झांसेबाज़ी के झांझ –
ख़ूब बजा लिए तुमने ;
अब काम की भी कुछ बातें हो जाएं ।
जिस ज़मीं पर तुमने हमें खड़ा किया –
वह ज़मीं नहीं , दलदल निकला ।
जिस आसमान पर ले गए तुम हमें –
वह तो हमें एक बवंडर निकला ।
बहाने बाज़ी के बगुले –
ख़ूब उड़ा लिए तुमने ;
अब काम की भी कुछ बातें हो जाएं ।
दिन में ख़ूब तारे दिखाएं तुमने हमें –
सूरज को बंधक बनाकर कोठी में ।
ख़याली पुलाव रोज़ पकाकर तुमने –
ख़ूब पानी डाला हमारी अंगीठी में ।
चुहलबाज़ी के चंवर –
ख़ूब डुला लिए तुमने ;
अब काम की भी कुछ बातें हो जाएं ।
+ अशोक ‘ आनन ‘ +
मक्सी