”कल सारे मेहमान आ जायेंगे, क्या सोचा है तुमने?”
”किस बारे में?”
”तुम्हे अच्छे से पता है, मैं किस बारे में बात कर रही हूँ। ”
”तुम कभी कुछ सीधे सीधे नहीं कह सकती?”
”मैं तुम्हारे….”
तभी आवाज आती है….
”सुनो बेटा दीपक.”
”हां पापा बोलिये ना”
”मैं बाजार जाना चाहता हूँ, अपनी पोती तनिशि के लिए कुछ लाना चाहता हूँ। बचपन से उसे कांधे पर बिठाकर घुमाया है, उसकी हर फरमाइश पूरी की है, तुम्हारी और बहु की डाट सुनकर भी उसके लिए रोज जलेबी लेकर आता था, कब वो इतनी सी मेरी गुड़िया इतनी बड़ी हो गई, पता ही नहीं चला। वो दिन मुझे आज भी याद है जब वो उसकी तोतली आवाज़ में मुझे ”दादू” कहती थी, उसके नन्हे नन्हे हाथों मेरा सर दबाती थी। तुम्हारी माँ के बाद तनिशि सांझ होती मेरी जिंदगी में आशा की सुबह बनकर आई थी, मेरा दिन कब निकल जाता था पता ही नहीं चलता था।”
”बेटा कुछ पैसे चाहिए थे, तनु के लिए कुछ लाने का मन था। ”
”रहने भी दीजिये पापा जी, आपके गिफ्ट्स उसे अब कहा पसंद आएंगे, इतने सालों में आपको उसकी पसंद का भी अंदाजा नहीं होगा, अब वो बच्ची थोड़े ही है जो जलेबी देखकर खुश हो जाएगी”
”इतने सारे काम है पापा, मुझे अभी एयरपोर्ट भी जाना है थोड़ी देर में, मेहमानों को लाना हैं, मार्किट जाना हैं, पंडित जी से मिलाना हैं और भी बहुत कुछ….”
”बेटा दीपक सुनो तो…”
और दीपक चला जाता है, बूढ़ी आँखे दिन भर दीपक का इंतजार करती है और दीपक आता है और कहता है,
”पापा कल सारे मेहमान आ जायेंगे, मैं सोच रहा था की, मतलब अभी शादी के कार्ड्स भी बट गए है, अब घर खाली नहीं रहेगा, आप समझ रहे हैं न मैं क्या कह रहा हूँ की अब मैं और आपकी बहु है शादी के घर का ख्याल रखने के लिए, आप सुबह तैयार रहिये, मैं आपको वापस छोड़ आऊंगा”
शादी के लिए सजे घर को अपनी नम आखों से भास्कर देखता और कहता है..
”बेटा तुम तकलीफ मत करो, मुझे इस बात की ख़ुशी है की तुमने मुझे अपने नौकरों से बेहतर समझा की जब तुम और बहु घर पर नहीं थे तो मुझे पर घर की जिम्मेदारी छोड़कर गए थे. यहाँ से वृद्धा आश्रम ज्यादा दूर नहीं है, तुम परेशां मत होउ, इस बूढ़े किसान के पैर आज भी कई दूर तक चल सकते है, तुम जाओ मेरी पोती की शादी में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए.”
”पापा इतनी रात को कहा, इतनी दूर जाओगे, ,मैं…..कल….
”मैं चला जाऊंगा, तुम बस अपना स्टेटस सम्भालों. और हां, मेरे पास अभी ये पुराना चांदी का गणेश जी का सिक्का ही बचा है थोड़ा काला पड़ गया हैं, पोलिश करवाने के लिए पैसे नहीं थे, अगर तुम्हें सही लगे तो तनिशि को मेरा आशीर्वाद समझ कर दे देना.”
बूढ़े भास्कर ने अपने हाथों से दीपक का कन्धा थपथपाया और चला गया…..
प्रेरणा पाटिल
सेंधवा, जिला बड़वानी
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