सिलसिले मौन होकर!

जैसें ही मुड़ा,वो आकार सामने

पलकें झुकी! उठते तूफान के साथ

एक सन्नाटा और खामोशी….!

उड़ती नजरों से देखा…..

सवाल दबें किसी हिचक में।

हड़बड़ाहट और घबराहट…!

सिलसिले मौन होकर 

उठ स्वर अटक जाते प्रश्न बन?

सामने दिवार नीचे बैठते भाव

उभरते चित्र मानस-पट 

नजर तक नहीं मिल सकती

घबराहट के सिलसिले से…!

सत्य नहीं है रूप सदा 

विचार विचरण ज्ञान चिर

महत्ता है उदासी की

उपयुक्त है द्वन्द्व-द्वन्द्व

उपजाऊ मिट्टी ही मैली होती

चमक बंजर रेगिस्तान में।

उपजेंगे विचार-मोती 

हर नई उलझन से….!

ज्ञानीचोर

म.पो. रघुनाथगढ़, सीकर,राज.

मो. 9001321438