प्रेम

प्रेम बरसा रहे हो मुझ पर सावन की तरह, 

हक भी जताते हो तुम साजन की तरह|

तुम्हारी ही पनाहों में बीते  मेरी शाम, 

तड़पा रही है तेरी याद मुझे तपन की तरह| 

पिघल ना जाऊं कहीं तेरी बाहों में हम दम,

सुलग रहे हैंअब जज्बात  अगन की तरह| 

तुम्हारे ही नाम से अब जानेंगे मुझे लोग,

लगता है सब कुछ सुखद सपन की तरह|

होगी मेरी जरूर पूरी मुरादों वाली रात, 

झिलमिल तारों सा आंगन है गगन की तरह|.

जँचता नहीं मुझे अब तेरे सिवा कोई और 

बस गए हो मेरे इन नैनों में अंजन की तरह|

“मीरा” की तो आदत है प्रेम में विष पीने की, 

अमृत उसे बना देना तुम भी मोहन की तरह| 

सविता सिंह मीरा 

जमशेदपुर झारखंड