औरत सदा महान

अब बदल गयी पहचान है।

वह अबला नहीं महान है।

धरती, सिंधु से अम्बर तक,

पूर्ण करे सब अरमान है।।

निज देश से विदेश तक भी,

हर जगह बनी पहचान है।

युगों से त्यागी बलिदानी,

हर जात की निगहबान है।।

कभी बिकी, लुट गयी कहीं पर,

हर वक्त विवश परेशान है।

महिमा, कदर समझ सको तो,

हर परिवार की यह शान है।।

कुदरत अगर है मधुर नज़म ,

तो औरत ही उनवान है।

सच की यह आवाज़ बनी है

मंज़िल पे इसका मुकाम है।।

सबको दे देती है खुशियाँ ,

पर अंदर से वीरान है।

प्यार से जो समझे इसको,

यह सरल हृदय आसान है।।

          ••

      • आसिया फ़ारूक़ी 

(राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका)

 प्राथमिक विद्यालय अस्ती, फतेहपुर (उ.प्र.)