गोमूत्र से बनी जैव खाद से खेती की मिट्टी को बनाया जा सकता हैं पोषक और गुणकारी –

:: अहिल्या माता गोशाला में जैव संसाधन केंद्र द्वारा उत्पादन और बिक्री विषय पर प्रशिक्षण का आयोजन ::
इन्दौर (ईएमएस)। केसरबाग रोड स्थित अहिल्या माता गोशाला में जैव इनपुट संसाधन के उत्पादन और बिक्री विषय पर मंगलवार से प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इसमें बुधवार को गोमूत्र से जैव खाद बनाने के तरीके की जानकारी दी गई। जैव विशेषज्ञ केलकर बंधुओं अजीत और रवि ने बताया कि किस तरह कीट का इस्तेमाल फसलों की बेहतरी के लिए किया जा सकता है। इस प्रशिक्षण शिविर में पांच राज्यों के किसान भाग ले रहे हैं। यह प्रशिक्षण 28 नवम्बर तक प्रतिदिन सुबह 10 से सायं 6 बजे तक चलेगा।
अभिनव एएचआरडीओ, एकेआरएसपी-1, सृजन, ग्रीन फाउंडेशन जैसी इस क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओं द्वारा अहिल्या माता गोशाला के साथ मिलकर आयोजित किए जा रहे इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में इन्दौर के केलकर बंधुओं ने बुधवार को दोनों सत्रों में मौजूद पांच प्रांतों के किसानों को बताया कि हम जानकारी के अभाव में केमिकल से बनी खाद का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, जिससे उपजाऊ मिट्टी को भारी नुकसान पहुंचता है। हम केमिकल के विकल्प के रूप में खुद जैव खाद तैयार कर सकते हैं और उससे हमें अत्यधिक लाभ मिल सकता है। उन्होंने गोमूत्र से जैव खाद बनाने के तरीके भी वीडियो प्रदर्शन के जरिए किसानों के साथ साझा किए। प्रशिक्षण के दौरान ग्रीन फाउंडेशन के निदेशक प्रमेल कुमार गुप्ता ने भी जैव खाद की उपयोगिता के बारे में किसानों को जानकारी दी। पहले तीन दिन इस प्रशिक्षण में केलकर बंधु सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक जानकारियां देंगे। प्रशिक्षण सत्र में आए किसान प्रतिदिन अहिल्या माता गोशाला की गतिविधयां भी देख रहे हैं और गोसेवा का पुण्य लाभ भी ले रहे हैं।
मटका खाद : प्रशिक्षण के दौरान बताया गया कि खाद बनाने के लिए एक मटके में गोमूत्र, गोबर, बेसन, गुड़ और मिट्टी का मिश्रण तैयार किया जाता है। इस मिश्रण को सात दिनों दिन तक छोड़ दिया जाता है। हालांकि प्रतिदिन इसे थोड़ी देर के लिए मिलाया जाता है जिससे खाद में जीवाणुओं में प्रतिदिन बढ़ोतरी होती रहे। सात दिनों बाद इस मिश्रण का छिड़काव कृषि मिट्टी में किया जाता है, जिससे खेत की मिट्टी काफी उपजाऊ और गुणकारी हो जाती है।
बिस्तर खाद : उन्होंने बताया कि इस खाद का इस्तेमाल भी कृषि में काफी उपयोगी है। इसके लिए ज्यादा जमीन की जरुरत होती है। जमीन पर एक फीट ऊंची गोबर की परत बिछाई जाती है जिस पर गोमूत्र और मक्का के आटे का छिड़काव करते हैं। इस तरह की पांच परतें बनाई जाती हैं। फिर इसे पॉलिथीन से ढंक कर तीन महीने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद इन सभी परतों को इकट्टा कर मिला लिया जाता है और फिर यह खाद कृषि फसलों के लिए तैयार हो जाती है।
भीम टॉनिक : यह खाद बनाने के लिए सोयाबीन को भिगोया जाता है। इस सोयाबीन को पीसकर इसके मिश्रण में गोमूत्र के साथ गुड़ और गोबर का पानी मिलाया जाता है। कुछ दिनों बाद इस मिश्रण का छिड़काव फसल में किया जाता है। कार्यशाला में आए हुए किसानों ने भी पूरी दिलचस्पी के साथ इन सभी विधियों को समझा और अनेक सवाल भी किए।
गोशाला प्रबंध समिति के अध्यक्ष रवि सेठी, संयोजक सीके अग्रवाल और सचिव पुष्पेंद्र धनोतिया ने प्रारंभ में सभी अतिथि वक्ताओं एवं बाहर से आए किसानों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि किसानों को गुरुवार को मंडलेश्वर स्थित माधव निवास आश्रम गोशाला में ले जाकर प्रायोगिक जानकारी दी जाएगी। इस दौरान उन किसानों से भी चर्चा की जाएगी, जो जैव खेती कर रहे हैं।