पुलिस कमिश्नर प्रणाली कई होय?

सुबे-सुबे जसे ई रामू काका जी ने अखबार खोल्यो, उनकी‌ नजर पेला पन्ना की हेडलाइन पे पड़ी- “भोपाल और इंदौर में लागू होगी पुलिस कमिश्नर प्रणाली- शिवराज सिंह चौहान ने की घोषणा ।”  हेडलाइन पड़ी ने उनकी आंख्यां असी बड़ी हुई गी जसे अब्बी हाल गोल चशमा में से हिटी ने बायर पड़ी जायगा । उनकी असी आंख होण देखी ने काकी बोली – “कय हुवो पप्या का दायजी , असो कई देखी ल्यो अखबार में ?” 

“अरे कई नी होऽ अपणा मामाजी ने इंदौर अणे भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा करी दी ।” रामू काका जी ने बिना काकी की आड़ी देख्ये ज जवाब दय दियो । अब्बे काकी की आंख्यां डबल बड़ी हुई गी अणे एक आंगली माथा पे लगय ने सोच-विचार की मुद्रा बणय ने बोली- “पुलिस कमिश्नर की नाली ! या कई होय बले ?” काकाजी कय केता उका पेला ज बायर खड़्यो  हरियो दांत काड़ी ने बोल्यो -“तम रेवा दो काकी, जाव भीतरे जय ने चौका को काम निपटाव ।” काका आड़ी देखी ने हरियो बोल्यो- “पण काका या तो म्हारी बी समझ का बायर हे आखिर कई होय या पुलिस कमिश्नर प्रणाली ?” 

“अरे हरिया जसे पेला सब काम का मुखिया कलेक्टर साब होता था नी अब्बे उनका अधिकार हटी जायगा । धारा-144 ,लाठी चारज, गोली चालन, शस्त्र लाइसेंस आदि सब अधिकार पेला कलेक्टर साब का पास रेता था अब्बे कमिश्नर साब का पास चली जायगा ।” रामू काका ने हरिया के समझाते हुए कयो । “ओ म्हारा दायजी ! असो होय तो फिरी कलेक्टर साब कायका कलेक्टर रेगा ! ने जिला का लोगोण उनकी क्यवं सुनेगा ?” हरियो बोल्यो । “असो नी हे रे नाना ! मामाजी की सोच या हे के सेर में आजकल घणी चुनौती होण रे तो उनसे निपटणो तो पुलिस के ज पड़े ने कलेक्टर साब से कारवाई की पूछे जद तक घणी देर हुई जाय तो उनने सोच्यो यो काम पुलिस के ज दय दांगा तो कानून वेवस्था हऊ बणी रेगी । “

“पण काकाजी तम कई बी को ! म्हारे तो या बात नेठूज समझ नी अई । पेदा हुवो जदसे ज यो सुण्यो के जिला को मालिक कलेक्टर ज होय । सगला काम भी तो कलेक्टर आफिस में ज होय, अपणा काम भी वां से ज होय । तो फिरी उनका‌ अधिकार मामाजी ने क्यवं छीन्या ? ” हरिया ने थोड़ो गुस्सो जताड़ियो । रामू काका बोल्या- ” देख हरिया यां तो शासन की वेवस्था ‌हे ने वेवस्था तो बदलती रेवे पण हां देखनो यो हे कि यां नवी वेवस्था कित्ती कारगर साबित होय क्यवंकि यां प्रणाली चले नी हे आखी आईएएस लॉबी सरकार का विरोध में हुय सके । इतिहास गवाह हे कि अधिकार वास्ते तो महाभारत युद्ध तक हुई ग्यो थो । अंदरुनी महाभारत तो यां भी चालेगा रे पण हो अपणे कई ? ” हरियो धीरे से रामू काका का कान में फुसफुसायो- ” चुनावी दंदफंद तो नी हे काका ।” रामू काका विचार में पड़ी ग्या- “देख हरिया अपण तो आम जनता ! अपणे कोई तकलीफ़ आयगा तो गोर करांगा ।” जद तक काकी चा बणय ने लय अई- ” तम दोय तो असा सला-मशवरा में लग्या हो जसे राजपाट तमारे ज चलाणो होय, चा पीलो ने ढोर ‌होण के निराव डाली दो । सुबे माय से अखबार का फोतरा ने लय ने बठी जाव ।” बड़बड़ाती हुई काकी घर में चली गई ने रामू काका और हरिया चा को अमृतपान करने लगी ग्या । 

        हेमलता शर्मा भोली बेन

            इंदौर, मध्यप्रदेश