यहाँ-वहाँ, इधर-उधर
हर जगह, हर कहीं
हीरे-माणिक-मोतियों से
बिखरे पड़े दिखते हैं शब्द
कभी शोर करते
तो कभी मौन से पड़े
कभी अजनबियों से प्रेम करते
कभी अपनों से लड़े
कभी गीता का संदेश बने
कभी बने गुरुवाणी
कभी रामायण
महाभारत बन गए
कभी पुराण और
वेदों की वाणी
जहाँ कहीं भी नज़र जाती है
दूर हो या पास
सर्वत्र बिखरे दिखते हैं मुझे
“शब्दों के कैनवास”
डा. सारिका मुकेश
तमिलनाडु
मोबाइल: 81241 63491