मनहरण घनाक्षरी

कुटुंब धुरी हो तुम

प्रिय माधुरी हो तुम

आकर निकट मेरे

मुझे अपनाइये।

तुम मेरी निगाहों में

जैसे दीप हो राहों में

उर का गहन तम

परे कर जाइये।

प्रेमपूर्ण वचनों से

पंकज से नयनों से

मेरे हृदय को तुम

मुझसे चुराइये।

ओस बूँद ठहरी हैं

आकर गोरे मुख पे

प्रेम की माधुरी तुम

सदा ही सुनाइये।

प्रीति चौधरी “मनोरमा”

जनपद बुलंदशहर

उत्तरप्रदेश