कहाँ पूछता कोई तेरा अब हाल हैं,
हर कोई बेवजह यहाँ बेकरार हैं।
किस दंभ में देखो यहाँ अब न रहा
किसी को किसी से कोई सरोकार हैं।।
लादे चलता हैं यहां झूठे शान को
भारी रखता अपनों पे अहंकार है
पाँव जाता नहीं जिनके घर तक
शाम तन्हाई में देता वह गुजार हैं।
समय का कैसा हुआ ये कहर हैं,
दु:ख से डरा बौनों का ये शहर हैं।
ऐब खोजता आदमी चल रहा हैं,
अपनों से छूपा रखा अब नजर हैं।
संजय श्रीवास्तव
अनीसाबाद, पटना