भेड़िया

शहर से कुछ दूर एक छोटा सा गाँव था।गाँव बहुत संपन्न तो नहीं था पर लोग खेती-बाड़ी करके जीवन यापन कर ही लेते थे कुछ दिनों से एक अजीब सी मुसीबत ने उन्हें घेर लिया था, आए दिन जंगल से भेड़िया कभी बकरी तो कभी नवजात बच्चों को भी उठा ले जाता। गाँव के लोग दहशत में थे,यह एक नई मुसीबत थी। दिन भर के थके हारे नींद की आगोश में जैसे ही जाते गाँव में हल्ला मच जाता।भेड़िया रघु की तीन महीने की बिटिया को उठा ले गया था। उसका क्षत -विक्षत शव खेतों में पड़ा मिला था।आज रघु तो कल कोई और…कभी बच्चे तो कभी कोई जानवर। गाँव वालों ने बड़ी हिम्मत और बुद्धिमानी के साथ काम लिया और रात-रात भर जागकर भेड़िया से अपने गाँव को मुक्त करा लिया। सब ने राहत की सांस ली,

 कुछ दिनों से गाँव में शहर से आए हुए कुछ नौजवान लड़के गाँव के मुखिया के घर रुके थे।सुना था गाँव के रहन-सहन और संस्कृति को समझने और उन पर रिसर्च करने आए हैं।गाँव वालों ने उन्हें हाथों हाथ लिया था। मुखिया जी ने केशव की उनकी सेवा खातिर में लगा रखा था। गाँव में हल्ला मचा हुआ था, केशव की बिटिया का क्षत-विक्षत शव खेतों में मिला,तन पर एक कपड़े भी न थे।गाँव वाली सोच में थे ये कैसा और कौन सा भेड़िया था…?

डॉ. रंजना जायसवाल

लाल बाग कॉलोनी

छोटी बसही

मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

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