मेरी कविता मेरे गीत
एकांत के सहचर
उभर उठे जब कभी
एकांत में स्वर
और बजने लगा
मन में संगीत
रची गयी तब-तब
कोई कविता, कोई गीत
सच कहूँ तो
कविता हो या गीत
एक संवाद ही तो है…
खुद से किया गया संवाद
परिवेश से किया गया संवाद…
और जब अनुभूति गहन होती है
तो समाधिस्थ अवस्था में
यही ईश्वर से किया
संवाद बन जाता है…
होवे संवाद परमपिता से
आओ करें कुछ ऐसा प्रबन्ध
इससे पहले कि पूरे हों
साँसों के अनुबंध
—डा. सारिका मुकेश
वेल्लोर―632 014
(तमिलनाडू)