सुख की तितली की खोज में , भटकूं इधर-उधर ,
मिल जाए तो पकड़ने को , दौडूं वो जाए जिधर ।
इस मृगतृष्णा का क्यों फैला है , सब तरफ समंदर ,
सुख की तितली तो बसती है , अपने मन के अंदर ।
सुख की तितली में पंख लगे , होती है गतिमान ,
कब उड़ जाए जीवन से , तनिक न होता भान ।
छोटी-छोटी खुशियों को , समेट लेना अपने अंदर ,
सुख की तितली तो बसती है , अपने मन के अंदर ।
सुख दुख दो पहलू जीवन के , बात है यह अटल ,
जो दुखों में भी ना घबराए , वही होता है सफल ।
गमों में भी मुस्कुराने वाला , होता है सिकंदर ,
सुख की तितली तो बसती है , अपने मन के अंदर ।
सुख और दुख हमेशा ना रहते , चक्र बदलता रहता ,
शाश्वत सत्य संसार का यही , जीवन चलता रहता ।
कभी एक जैसा ना रहता , जिंदगी का मंजर ,
सुख की तितली तो बसती है , अपने मन के अंदर ।
जहां होता लालच , ईर्ष्या , गुस्सा और अहंकार ,
सुख की तितली वहां आने से , करती है इनकार ।
दुख ना हो तो सुख की , अहमियत होती कमतर ,
सुख की तितली तो बसती है , अपने मन के अंदर ।
संतोष से जो जीवन जीते , हरदम रहते मस्त ,
दया , प्रेम जिनके मन में , रहते हैं हर वक्त ।
सुख की तितली वाले होते , सबसे मस्त कलंदर ,
सुख की तितली तो बसती है , अपने मन के अंदर ।
नेहा चितलांगिया
मालदा
पश्चिम बंगाल