एक प्रतिमूर्ति

वही सादगी

वही सरलता

वही सुकोमलता

वही शरारत

वही शिल्प

क्यों दीख रहे हैं

वो अतीत के धागे

दोहरान ऐसे जैसे

सुबह नींद से जागे

लंबे अंतराल बाद

वही प्रतिमूर्ति 

स्वप्न नहीं

वास्तविकता है

यदा कदा उससे मिलना

गहरा सुकून देता है

सुकून कब तक?

मेरे अस्तित्व तक

जब प्रतिमूर्ति से

एकाकार हो गया

अब संशय नहीं

मैं साकार हो गया

तरुण कुमार दाधीच

36,सर्वऋतु विलास, मेन रोड,

उदयपुर(राज) 313001