परवाह नहीं मुझको

घबराहट है

छटपटाहट है

वेदना है

संवेदना है

बाध्यता है

असहजता है

मलाल है

कई सवाल है

अपने इश्क की किताब के

इतने सारे बेतरतीब चैप्टर हैं ।

प्रत्येक सफहे पर मेरे श्रमबिंदु के

दस्तखत दम तोड़ते मिल जायेंगे ।।

नियति के सम्मुख

बस याचना है

आराधना है

गुहार है

पुकार है

आर्तनाद है

फरियाद है ।।

इसको फितूर कहो

गुरूर कहो

अथवा सुरुर ।

परवाह नहीं मुझको ।।

मनीष सिंह “वंदन”

आई टाइप, आदित्यपुर