क्या जिंदगी हसीन है?
पूछता फकीर है
एक शख्स काले कोट में ,
बैठा है काली कार में
मंदिरों की सीढ़ियाँ,
बंडलों में रोटियाँ
दो हाथ जब आगे बढ़े,
लेने को रोटियाँ…
लगा विचार सोचने,
कहाँ गए वो हाथ जो
दे रहे हैं रोटियाँ !
पाकर खुद को और अमीर,
उठ खड़ा हुआ फकीर
हाँ , “ज़िंदगी हसीन है”
यह कहता फकीर है।
क्या जिंदगी हसीन है ?
यह पूछते सभी हैं,
क्या पूछा कभी अनाथ से
क्या ज़िंदगी में प्यार है,
मिले जवाब तो सोचना
क्यों ज़िंदगी हसीन है ?
क्या पूछा कभी दिव्यांग से
क्या जिंदगी आसान है ?
मिले जवाब तो तोलना
उन संघर्षों की बेड़ियाँ ।
आसान नहीं है कहना,
यह ज़िंदगी हसीन है,
जान लो क्या ज़िंदगी है
तो ज़िंदगी हसीन है।।
– हर्षिता चौहान
आईआईटी , खड़गपुर