क्या उनके गिरेबान तक पहुंच पाएंगे एजेंसी के हाथ जिनके संरक्षण में बरसा काला धन ?
(पत्रकार—आरटीआई कार्यकर्ता ” राजेन्द्र के.गुप्ता ” की कलम से खास टिप्पणी)
हाल ही में जीएसटी विभाग के छापों में समाजवादी इत्र के नाम से व्यापार करने वाले पीयूष जैन के यहा मिले दो हजार, एक हजार के नोटों के गोदाम ने अखबारों, चैनलों से लेकर सोशल मीडिया पर सनसनी फैला रखी है। कुछ उसे बेवकूफ कहकर मजाक उड़ा रहे हैं कि, दो सौ करोड़ रुपए नकद के बावजूद वेस्पा स्कूटर पर चलता था, स्लीपर पहनता था, पायजामे में ही शादी में पहुंच जाता था, कोई कह रहा है, वो इस काले धन को सफेद नहीं कर पाया आदि, आदि…., ये अलग बात है कि बिना लोन लिए इतना धन होने के बावजूद वो हवा में नही उड़ा….. केजरीवाल, राहुल और मोदी से ज्यादा मीम, जोक और व्यंग इत्र व्यापारी पर बनाए जा रहे है, कोई इत्र का व्यापार शुरू करने की बात कर रहा है, इस मामले की जिस गहराई से पड़ताल होनी चाहिए वह कहीं दिखाई नहीं दे रही….लगता है कुछ दिन में पूर्व में सामने आए घोटाले, काले धन के मामलो की तरह ये मामला भी किस्सा बन जाएगा, यहा सबसे ईमानदार सरकार के रहते, टू—जी घोटाले के सभी आरोपी बरी हो गए है, चुनावों में खर्च कम हो गए है, नेता खादी के सस्ते कुर्ते पहन कर समाजसेवा कर रहे है, जांच के दायरे में उनको भी लेना चाहिए जो इत्र व्यापारी जैन से लगातार व्यापारिक व आर्थिक लेने—देन के संबंध बनाए हुए थे, किसको इत्र व्यापारी ने नगदी सहित अन्य तरीकों से आर्थिक सहायता दी ….
नोट बंदी से परेशान हुई जनता की मेहनत, पानी हो गई, ये तो काले धन वालो पर मेहरबानी हो गई —
नोट बंदी के बाद एक व्यक्ति यदि कुछ वर्ष में इतना काला धन इकट्ठा कर सकता है तो इसका मतलब यह हुआ कि हमारे काला धन नियंत्रित करने का पूरा तंत्र विफल है। क्या हमे नोटबंदी के बाद अपने कानूनों में कुछ ऐसी सजा के प्रावधान नहीं करने चाहिएं जिससे भविष्य में कोई काला धन इकट्ठा करने का ख्याल ही मन में नही लाए अन्यथा नोटबंदी के बाद दो साल तक आम जनता ने जो कष्ट भोगे हैं वे सब गड्ढे में गए दिखेंगे। नोट बंदी से परेशान हुई जनता की मेहनत, पानी हो गई, ये तो काले धन वालो पर मेहरबानी हो गई…पहले दो हजार के नोट नहीं होने के कारण बड़ी ब्लैक मनी को रखने में बड़ी समस्या आती थी…
जिम्मेदार अफसर क्या सूंघते रहे —
कोई व्यापारी इतने दिन तक कैसे अपने व्यापार को इतना कम दिखाता रहा। जी एस टी लाने का भी बड़ा तर्क यही था कि इससे कर चोरी रुक जाएगी। जिम्मेदार अफसर क्या सूंघते रहे ? अर्थात टेक्स चोरी पकड़ने वाले विभागों के अफसरों का नेटवर्क इतनी लम्बे समय तक फेल कैसे रहा ?
क्या नेताओं का काला धन है ?—
क्या इस धन में किसी भ्रष्ट राजनेता या बड़े अफसर आदि का हिस्सा है जिसे नकदी के रुप में चुनाव आदि के लिए रखा गया था अन्यथा व्यापारी इसका जमीन जायदाद में इन्वेस्टमेंट कर देता।
काला धन और भ्रष्टाचार कम नही हुआ —
कुल मिलाकर यह मामला भ्रष्टाचार कम हुआ है क्या ? काला धन कम हुआ है क्या ? काला धन वापस लाया गया है क्या ? कर चोरी कम हुई है क्या ? आदि तमाम दावों के मुंह पर ऐसे मामले बड़ा तमाचा मारते है। कोई यह कहकर भी नहीं बच सकता कि यह अपनी तरह का अकेला अपवाद है। आयकर, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू, ईडी के छापों में भी सैकड़ों करोड़ों का बढ़ता हुआ काला धन और हेरा फेरी सामने आई है, जो लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार को प्रमाणित करने के लिए काफी है। छापे तो पहले भी डाले जाते रहे है। टेक्स चोरी के मामले भी लगातार सामने आ रहे है….
काले धन वालो के प्रति नफरत नहीं —
असली मुद्दा तो यह है कि, हमारे समाज में जब तक काले धन के प्रति नफरत का भाव और ऐसे मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान नहीं होता तब तक कोई खास परिर्वतन बहुत मुश्किल है। लोग काले धन की जुगाड़ में लगे रहते है और ईमानदारी, देश भक्ति का ढोंग करते है….
सब शामिल है इसमें —
आप अपने शहर में ही थोडा झांककर देखिए, आपके सांसद, विधायक, पार्षद, मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारा समिती के पदाधिकारी,कथित समाजसेवी (चंदे के लिए), अधिकांश आधिकारी, इन्वेस्टर एजेंसी के संचालक, आदि ऐसे ही व्यापारियों, इत्रों के व्यापारियों आदि के इर्द गिर्द चक्कर लगाते मिल जाएंगे। जैन हवाला कांड भी आपको याद ही होगा। दो नंबर का पैसा इन्वेस्ट करवा कर, कई लोग ऐसा व्यापार कर रहे है जिसमे नगदी लेन—देन होता है…