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होंठ है मौन
चीख रहा है मन
टूट गया है दिल
रो रहा है मन
मौन लिखा नहीं जाता
दर्द सहा नहीं जाता
अंतर्द्वंद चल रहा है
व्यथा बया किया नहीं जाता
होंठ है मौन
चीख रहा है मन
अंतर्मन व्याकुल से भरा
नेत्र अश्रुहीन बंजर बना
चिंतित मन में प्रश्न उठ खड़ा
आँधी-तूफ़ान ऊधम मचाया बड़ा
होंठ है मौन
चीख रहा है मन
कब होगा प्रश्नों का समाधान
पूछ रहा है मन कई बार
मौन सहा नहीं जाता
चीख दबाया नहीं जाता
होंठ है मौन
चीख रहा है मन
रातों को नींद नहीं लगती
दिन को सुकून नहीं मिलती
ज़ख्मों पर मरहम लगाने
दवा नहीं मिलती
होंठ है मौन
चीख रहा है मन
कब मिलेगा चैन
कब शांत होगा नैन
कब बुझेगी मन की प्यास
कब आएगी जीवन में आस
होंठ है मौन
चीख रहा है मन
*संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक ✍🏻✍🏻*