समाजवाद का इत्र या बीजेपी की खुशबू

हाल ही में प्रदेश और देश में चारों तरफ कोरोना के कारण जो उथल-पुथल का माहौल पसरा हुआ है उससे सभी वाकिब है । लगातार कुछ वर्षों से हो रहे प्राकृतिक आपदाओं के कारण सामान्य वर्ग  का जीवन कर्ज़ों के बोझ  से उबर ही नहीं पा रहा है। लेकिन राजनीतिक लोग आज भी घरों में करोड़ों रुपए दवा कर बैठे हुए हैं जिसका वास्तविक हकदार कोई और ही है।  लेकिन किसी और को मुखौटा बनाकर काले पैसे को गोरा बनाने का राजनीतिक षड्यंत्र या चपलता आज कल बहुत मशहूर होती जा रही है। हाल ही में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने एक ऐसे व्यापारी के घर छापा मारा जो दिखने में बाहर से एक साधारण व्यक्तित्व का धनी है , और  उसका रहन सहन नवाबों के नक्शों कर्म से कोसों दूर था लेकिन किसी को क्या पता बाहर से एक आम नागरिक दिखने वाला कानपुर का इत्र व्यापारी पीयूष जैन  बकाई राजनैतिक कुवेरो के धन का  करोड़ों का आसामी निकलेगा । चुकी कानपुर की छवि पहले ही विकास दुबे की क्रूरता की छवि पूरे प्रदेश के साथ-साथ देश में व्याप्त है और दूसरी बार पहेली स्वरूप पीयूष जैन उभर कर सामने आया है, जो करोड़ों का आसामी है।

निरंतर हफ्ते भर चली इनकम टैक्स की छापेमारी का समापन होने बला है  और छुपे हुऐ जो आंकड़े सामने आए हैं जो बेहद चौकानेवाले हैं। कानपुर के कुबेर पीयूष के  कानपुर वाले घर से 213 करोड़  45 लाख नगद रुपए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने प्राप्त किया है, साथ ही कन्नौज वाले ठिकाने से 19 करोड़ नगर जप्त किया गया जबकि 11 करोड़ कीमत का 23 किलो सोने के बिस्किट एवं 6 करोड़ कीमत की चंदन की लकड़ी का बना हुआ फर्नीचर प्राप्त हुआ है । सोचने का विषय है इतना करोड़पति होने के बाद भी पीयूष जैन के कोई भी ठाट बाट नहीं हुआ करते है और वह आम जीवन व्यतीत करता है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है की कही यह पैसा किसी राजनीतिक दिग्गजों के काले कारनामों का परिणाम तो नही, या किसी गुनहगार  के गुनाहों का काला चारित्र तो नही जिसको इतना छुपा कर रखा गया है। आखिर ऐसी क्या आवश्यकता थी की इतनी बड़ी मात्रा में नगदी रुपयों को घर के साथ-साथ दीवारों में चुनवा कर रखवाया गया । इनकम टैक्स के अधिकारियों ने निरंतर 4 दिन पैसों की गिनती करने के लिए कई मशीनों को लगाना पड़ा अब आमने सामने राजनीतिक गलियारों में शब्दों के बाण, गालियों के लात घुसे चलना शुरू हो गए हैं।

एक तरफ सत्तारूढ़ पार्टी ने पूर्व में सत्ता में रही पार्टियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि विकास का पैसा दीवारों में कैसे चला गया । इसका सीधा सा तात्पर्य है या तो यह पैसा किसी ना किसी राजनीतिक व्यक्ति का ही हो सकता है साथ ही  समाजवादी पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीजेपी को निशाना साधते हुए कहां की इत्र की दुर्गंध तो बीजेपी की ही है ।   लेकिन सभी एक दूसरे पर आरोप मढ़ते  नज़र आ रहे है । लेकिन सही मायने में कहां जाए तो कैसे देश और प्रदेश में गरीब के हक का पैसा काट काट  कर अपने घरों को भरा जाता है और अंत में वह पैसा किसी के काम में नहीं आता है,  सरकारें आती-जाती बनी रहती हैं लेकिन अपने गुर्गों को ऐसे ही मालामाल बनाती रहती है, और आम जनता हमेशा गरीब की गरीब ।

राम राजपूत