कल तक हमें सताती थी,
डाट – डपट दिखलाती थी।
देखो बदला इसका रूप,
सुखद सुहानी लगती धूप।
सुबह देर से अब आती,
शाम को जल्दी घर जाती।
सर्दी वाला रूप – अनूप,
नरम – मुलायम उजली धूप।
दादी – दादा राह देखते,
खुले लान में धूप सकते।
बच्चे मिलकर करते शोर,
तितली घूमें चारो ओर।
पंछी मस्त तराने गाते,
सूरज काका जब मुस्काते।
मौसम का बदले स्वरूप,
खुशियाँ लाये उजली धूप।।
नरेन्द्र सिंह नीहार
नई दिल्ली