कितना प्यारा हुआ करता था बचपन
माँ का लाड़, पापा का दुलार होता था
स्कुल टाईम भी होता था मस्ती भरा
दोस्तों की दोस्ती होती थी बेमिसाल
भाई-बहन का होता एक सुंदर संसार
छिना-झपटी, गुस्से में भी होता था प्यार
माँ की फ़िक्र, पापा की ज़िम्मेदारियाँ भी
दे देती दुनिया समझने के कितने सबक
मिलती थी छोटी-छोटी चीजों से ख़ुशियाँ
ख़ुशियों का तो पैगाम होता बचपन
अब, बचपन गया, ख्वाहिशें बदल गयी
माँ-पापा का वो प्यार में रह गया यादों
आज माँ बन परिवार को सम्भाल रही
न जाने खो गये कहीं, देखे थे जो सपने
समझौतों का नाम ही तो है ज़िंदगी
लौटकर दुबारा नहीं आता वो बचपन
● रीना अग्रवाल, सोहेला (उड़ीसा)