समा फिर लगे है वही घूमता सा,
नया साल में है भला क्या नया सा।
ये दस्तूर चलता रहा है सदा ही,
लगे व़क्त भी आज ठहरा हुआ सा।
वही चाहते हैं वही रास्तें है,
लगे आज भी है वही फांँसला सा।
कि बदली यहांँ आज तारीख़ ही बस,
नहीं लग रहा हाल बदला हुआ सा।
खिले फूल ऐसे जगी आस सी हैं,
अंँधेरा दिलों से लगे हैं छंँटा सा।
करें आज कोशिश ब़ढ़े धुंध में ही,
दिखे का़श तारा चमकता हुआ सा।
कहीं पर खिली धूप जगमग जहांँ है,
कहीं जल रहा दीप लगता बुझा सा।
मिटे रंजिशें जो भरी हैं दिलों में,
नए साल में तब लगे कुछ नया सा।
मिले दोस्त से जो रहे दूर हमसे,
‘अना’ चाहती हो यही कुछ नया सा।
अनामिका मिश्रा
झारखंड जमशेदपुर
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