तुम गजल बन गई और मैं गीत बन गया,
जाने कब कैसे मैं तेरे सांचे में ढल गया।
ना कभी हमने कीं तुमसे बातें हंसी,
ना ही छुप छुप के तुमसे मिले हम कहीं,
फिर भी ना जाने कैसे यह दिल मचल गया,
जाने कब कैसे मैं तेरे सांचे में ढल गया।
अब तो दिखती है तू ही मैं देखूं जिधर,
न ख़बर शाम की न सुबह की फिकर,
दोस्त कहने लगे हैं यार तू बदल गया,
जाने कब कैसे मैं तेरे सांचे में ढल गया।
तुम गजल बन गई और मैं गीत बन गया,
जाने कब कैसे मैं तेरे सांचे में ढल गया।
मीनेश चौहान “मीन”
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)