तेरे लिए

हमने तो बहारों से ना कभी 

फरियाद किया फरियाद किया।

शिकवा ना गिला क़ोई भी किया 

ना भूला और ना याद किया।

हम प्यार में अपने हमदम के 

इस कदर हुए मशगूल यहाँ।

कुछ याद नहीं बस उनके सिवाय 

क़ोई और किनारा कूल कहाँ?

उनके ही लिए जीता हूँ यहाँ 

कुछ भी मैं उनके बाद किया।

जाएँ ये बहारें या आएँ 

अपने को फर्क नहीं पड़ता।

शूलों के इतने जख्म यहाँ 

हल्का ही लगा कांटा गड़ता।

हमको तकलीफ नहीं होती 

बस थोड़ा सा नाशाद किया।

उजड़े या रहे चमन अपना 

बदलें जो रंग फिजायें भी।

गुलशन महके या ना महके 

विरही जो आएँ खिजाएँ भी।

हम एक भाव में बहते हैं 

आबाद या फिर बर्बाद किया।

वीरेन्द्र मिश्र ‘विरही’ गोरखपुर-

उत्तर प्रदेश-8808580804