नई आशाओं की गठरी थामें,
जीने नऐ हौंसले संग जीवन को ,
फिर चौखट पर आ पहुंचा है यह साल ।
वक्त की तेज गति कर लूँ धीमा ,
फुर्सत के दो पल मैं थामूं ।
जो कुछ बीता पिछला ,
उन कड़वी यादों को धुंधला दूं।
कुछ ख्वहिशों के पंख लगाकर,
उड़ जाऊं बस नील गगन में ।
तमन्नाओं की बांध पोटली ,
जीवन में सरपट मैं भागूं ।
कल क्या होगा करुं क्यों चिंता ,
आज समय को जी भर जी लूँ ।
साल दर साल है गुज़रता जाता ,
इस जीवन का यही ठिकाना ।
जीवन रुपी इस बगिया को,
चलो महक से हम महका दें ।
रश्मि वत्स
मेरठ (उत्तर प्रदेश)