हुआ प्रक्षालित नव प्रकाश से ,क्लांत धरा का मृदुल गात ।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
प्राची के अरुणाभ क्षितिज से,
जब दिनकर छोड़े रश्मि -शर।
मिटने को साम्राज्य तिमिर का,
लगता है मानो क्षण ही भर ।
ऊषा ने जब पैर पसारे , गई विदा लेकर फिर रात ।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
वसुधा पर बिखरे हिमकण को,
ऊषा चुन आंचल में भरती ।
सहलाकर नव कोंपल कर से,
खिलने को आतुर है करती ।
मुदित प्रसून नव शाखा पर हैं, पुलकित हुआ है पात पात ।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
शांत सरोवर पर उषा ने ,
जब निज स्वर्णांचल फैलाया।
शतदल हुए हैं विकसित ऐसे ,
मधुकर का मन भी ललचाया।
देख रवि प्रमुदित हैं सुमन सब, म्लान हैं कुमुदिनी पारिजात ।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
नव सौरभ से सुरभित उपवन ,
खगकुल कलरव से गुंजित मन।
देख मनोरम दृश्य ये लगता ,
प्रकृति ने पाया नव यौवन ।
हरित धरा का आंचल लहरा, बहा सुवासित मलय वात ।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
नीड़ छोड़ खगवृंद भी देखो ,
निकल पड़े उन्मुक्त गगन में ।
कर कलरव संदेश ये देते ,
जगो,उठो,अब तुम भी क्षण में ।
त्यागो आलस कर्म करो निज,सिखलाए जग को यह बात ।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
नवप्रभात की मधुरिम बेला
देती नव ऊर्जा, नव आशा।
विस्मृत कर बीती बातों को
जीवन को दें नव परिभाषा।
नव स्वप्नों, शुभ संकल्पों की, दी है जग को नव सौगात।
चीर तिमिर,ले अरुणिम आभा,जब आया अभिनव प्रभात।
©️®️✍️पवन सोलंकी
सुमेरपुर पाली।