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पतझड़ से पहले –
झड़ रहे हैं पत्ते ।
वक़्त जब बुरा आता है –
साथ छोड़ देते हैं अपने ।
नींद ही नहीं , नैनों का –
साथ छोड़ देते हैं सपने ।
आंधी से पहले –
उड़ रहे हैं लत्ते ।
पेड़ को ठूंठियाने पर –
ये दिखते हैं आमदा ।
लगे , मौसम का इन्हें –
पता नहीं है कायदा ।
बारिश से पहले –
गल रहे हैं गत्ते ।
हवा ही कुछ ऐसी चली –
उड़ाकर पत्ते साथ ले गई ।
जाते – जाते वह पेड़ को –
कई नसीहतें दे गई ।
मंज़िल से पहले –
थक रहे हैं जत्थे ।
पेड़ को अकेला छोड़ –
पखेरू भी उड़ गए ।
फागुन भी उसके माथे –
पतझड़ मढ़ गए ।
बहार से पहले –
चढ़ रहे हैं हत्थे ।
+ अशोक ‘ आनन ‘ +
मक्सी
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