गिद्ध नजर

देश जहाँ झेले महामारी 

वहीं सिंहासन की घमासान।

वोट चोट की राजनीति पर

 लूट खसोट का है घमासान।।

गिरते गिरते पहुँच गए हो 

अंधरे और गहरी खाई।

कीचड़ से तुम सने पड़े हो 

तुमसे आश नही भाई।।

कुर्सी का कितना मोह तुम्हें है

 इसका इससे अंदाज लगे।

जनता को सीधा झोंक दिया 

चाहे कॅरोना का आग बढ़े।।

जीवन रक्षक साधन उपलव्ध नही है 

करते हैं हम विकास की बात।

विकास छिपा कहीं दुबक कर

 पहले करलो जीवन रक्षा की बात।।

गिद्ध बने सब घूम रहे हैं 

नोचने को मुर्दों का माँस।

ओछी और तिरछी हरकत से 

कर रहे है जन को परेशान।।

राजनीति के चौखट पर

 मचा हुआ है घमासान।

कभी  करते जन रैली तो 

कभी बाँटते मौत समान।।

वायस सृंगाल सब भौंक रहा है

 मार मार कर अट्टहास आप।

शोणित और रुधिर की चाहत में 

खुशी मना रहा कुन्वे के साथ।।

लाशों की अब खरीद फरोख्त पर

 टिका हुआ है इनका आँख।

बोटी बोटी बाँट बाँट कर 

खाने का कर रहा इंतजाम।।

अब जागो हे जनता भारत के

  सोने से न चलेगा काम।

आँख मूंद तुम पड़े रहे तो 

कौन रखेगा आपका ध्यान।।

श्री कमलेश झा 9990891378

राजधानी दिल्ली