मन

दौडा-दौडा मन फिरे, 

पकडे इसका हाथ।

ज्ञानवान करके सदा, 

रखना हरपल साथ।

डोरी संयम से बंधे, 

मन का तब ही मोल।

बिन साधे करता यही,

जीवन डाँवाडोल।

चंचल मन को बांधना, 

कठिन बड़ा है काम।

सतत मनन करते रहें, 

लक्ष्य साध अविराम।

रस्सी से मन कब बंधे, 

यह गजराज समान।

अंकुश बस हरि नाम का,

वीनू देना ध्यान।

मन की बातें क्या करें, 

मन के रंग हजार।

खुश होकर नाचे कभी, 

रहता कभी उदास।

होता मन है बावरा,

सुने नहीं यह बात। 

प्रेम रंग में डूब कर ,

जागे सारी रात।

मेरे मन की बात को, 

लेते हैं प्रिय जान

बातें मन की कर गई, 

मुझको तो हैरान।

चंचल मन है बावरा, 

चले न इस पर जोर।

छुप छुप कर देखा करें 

श्याम सखा की ओर।

वीनू शर्मा

जयपुर-राजस्थान