आ जाओ न मेरी दिलरूबा…

पलकें बिछाएं हैं राहों में तेरे लिए …

गुलाबों से घर को महकाए हैं तेरे लिए …

तू आएगी कब वो मेरी दिलरूबा वो मेरी मेहबूबा ..

वर्षों से ना हम कभी सोये हैं तेरे लिए ..२

मिल जाओ न जल्दी से तुम 

आ जाओ न मेरे पास तुम 

कब से उम्मीद तेरे आने की लगाएं हैं 

दिल आग तुझसे मिलने की जलायें हैं वो मेरी दिलरुबा…

कब आएंगी वो हसीन रात …२

जब होगी मेरा तेरे हाथो में हाथ ..२

मिट जायेगी मेरी  दिल की प्यास

बुझ जाएगी मेरी सीने में लगी आग …

ओ मेरी दिलरूबा आ जाओ न मेरी मेहबूबा ….

पलकें बिछाये हैं तेरे लिए ,

घर को सजाएं हैं तेरे लिए …

कभी तो आएगी मेरी मेहबूबा …

इतना तड़पाओ ना मेरी दिलरुबा..

मनीषा कुमारी

मुंबई