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मुद्दतों बाद हमें मोहब्ब्त हुई है
इस दिल को तेरी जरूरत हुई है
कैफ़ियत कितनी है तेरी मुझ पे
हर जगह तेरी तलाश हुई है
आंखों को अब जा के ठंडक हुई है
देखने की तुझे ज़ब से इजाजत हुई है
सुनी है ज़ब से तूने कहानी मेरी
बात मेरी तूने अनसुनी नही करी है
रफ्ता रफ़्ता ही तू मेरी हुई है
मुझे समझने की तुझे अब फ़ुर्सत हुई है
इंतज़ार की तूने इंतेहा करी है
मैंने भी तुझ से रिहाई नही ली है
जाने क्या क्या तुझ पे लिखाई हुई है
मुलाक़ात की ज़ब से ख़्वाहिश हुई है
जिस्म पर मेरे हरारत हुई है
तेरी शरारत से रूह ताज़ा हुई है
कहने की किसी को हिम्मत नही हुई है
दिल बात दिल मे दफ़न रही है ।।
आरिफ़ असास
दिल्ली 8448738790
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