राधा कितनी दीवानी थी,
तुम क्या जानो कान्हा
सखियों से कहती थी,
मिला दो मुझे वो मोर मुकुट वाले से..
नैन तरस गई हैं,
राहें देखते- देखते!
मटके भी नहीं उठ रहे हैं।
पनघट से…
राहें देखती थी,
कभी फुलवारी की तरफ
कभी कदम के डाली पर
ओझल हो जाती थी,
सिर रखकर घुटने पर
एकांत बैठकर!
तुम्हें देखती रहती ,
कब आयेंगे मेरे कान्हा!
बार- बार यही कहती ,
अपनी सखियों से!
मिला दें मुझे वो मुरलीधर से
सिर्फ़ एक बार!
मेरे आँसू कर रहे पुकार
तुम क्या जानो कान्हा!
पूछो पनघट के स्थान से,
वहीं बैठी वो तुम्हें याद कर रही थी।
तब मैंने पूछा!
विश्वास नहीं…
तुम पूछ लो वहां के जलधारा से,
तुम्हारा ही नाम बतायेंगे!
कितनी दीवानी थी राधा
तुम्हें न पाने का,
उसका मन था आधा!
कितना प्रेम करती हैं वो तुमसे,
हे कान्हा एकबार जाकर मिल लो
ऐसे मत तरसाओ उसे
अपने प्रेम को
मिल लो जाकर!!
हे कान्हा विनती हैं मेरी
हे कान्हा हे कान्हा!!!!
मनोज कुमार
गोंडा जिला उत्तर प्रदेश
मो. न.7905940410