काष मेरा विष्वास तो करती मॉं !

होम डेकोर के शो रूम के शुभारम्भ पर मॉं की तस्वीर पर माला चढाकर जैसे ही ऑंखें बंद की प्रतीक को अपने सर पर मां का स्पर्ष महसूस हुआ। लगा मॉ ने आषीष दिया है। बंद आंखों की कोर से आंसू की बंुदंे छलक आई। मन ही मन मां से बोला आप मुझे छोडकर क्यों चली गई। आपकी हिम्मत से मैं आगे बढ रहा था। आपका हर तरह से मैं घ्यान भी रख रहा था। सब ठीक हो जाता काष आप मुझ पर विष्वास कर लेती।

 पापा आप दादी की तस्वीर के सामने इस तरह क्यों बैठे रहते हो। दादी की तस्वीर पर फूलमाला क्यों चढाते हो। दादी कहां चली गई लगातार बेटे के इन प्रष्नों ने मॉ से घ्यान हटा दिया। वह अपने बच्चे को क्या कहंे समझ ही नहीं पा रहा था। लेकिन ये भी सच है एक न एक दिन तो इसे बताना ही होगा। प्रतीक ने बताया बेटा आपकी दादी बहुत साहसी ओर मेहनती थी। मुझे बहुत प्यार करती थी। मैं भी उनके बिना नहीं रह पाता।  

किसान परिवार में पली बडी ओर किसान परिवार में ही ब्याही मेरी मॉंे। स्कूल से लौटकर मेरे पैर अपने आप खेत की तरफ दौड पडते। खेत में मजदूरी करते हुए भी मेरी मां के चेहरे पर खुषी भरी मुस्कराहट की झलक ओर फीर उनका मेरा माथा चुमना मेरे लिए प्रोटीन भरी खुराक बन जाया करती थी। हमारी खेती कम होने से पिता के साथ दुसरे किसानों के खेत में 100 -150/- रूपये प्रतिदिन की मजदूरी की आय से हम बच्चों का लालन पालन पढाई कराना बडा कठिन काम था। मैं वो पल कभी नहीं भूल पाया। एलजी , हायर जैसी कम्पनी का सर्विस इंजीनियर बनना मेरी मां के त्याग ओर मेहनत का फल है। वे हमेंषा मुझे साहस दिलाती , कहती मेहनत से कभी घबराना नही। सफलता जरूर मिलेगी , ये दिन भी नही रहेगें , परिवर्तन जरूर आयेगा। निष्ठापूर्वक लगन से काम , मुझे उंचाईयां दिलाता गया। नई नई कम्पनियों की अधिकृति मिलती गई। मेरा सपना तो केवल इतना था कि केवल दो तीन हजार रूपये मिल जाय। माता पिता पर बोझा न बनु बस काफी है। जीवन निकल जायेगा। मुझे याद आते है अपने वो दिन जिसमे एक ही इनरवीयर छः छः माह तक ओर एक ड्रेस दो तीन साल तक पहनना। सब कुछ ठीक चलने लगा था पर मां की अस्वस्थता ओर उससे अधिक उनका मानसिक रूप से डीप्रेस हो जाने से समय ने एक बार फीर बडा झटका दिया। मां बार बार यही बोलती की मेरी बिमारी में बेटे का काफी खर्चा हो जायेगा। पापा ओर मेरे द्वारा सारी व्यवस्थाएं हो जाने , कोई चिंता नहीं करने का आष्वस्त करने के बाद भी मॉ चिंतित रहती । बार बार दोहराती बेटा टुट जायेगा। मेरे इलाज में खर्च ओर मेरे साथ रहने से इसका कम्पनी का काम खतम हो जायेगा । मकान नहीं बन पायेगा।

 मैं ओर पापा उन्हे इलाज के लिये बडे शहरो के बडे डाक्टरों को दिखातेे ओर किसी तरह की चिंता नहीं करने की हिम्मत दिलाते। वे मेरे सर पर हाथ फिराने लगती , आंखो से आंसू बह निकलते। मनोचिकित्सक को भी दिखाया। टोने टोटके भी करवाये। बस हरसमय मेरी खुषी कि उन्हे बडी चिन्ता लगी रहती। 

कुछ दिन से रट लगा रखी थी कि मुझे नये बिस्तरों से तकलीफ होती है पापा से कहकर कमरे से सारे नये बिस्तर हटवा लिये। मोटर साईकल का पेट्रोल गंध मारने का बहाना कर मोटर साईकल , स्कूटी कमरे से बाहर करवा दी। मुझे ओर आपकी मम्मां दोनो को आपके नाना के यहां आयोजन में भेज दिया। हमेंषा की तरह पापा डेरी पर दूध देने गये तभी थोडी ही देर में अपने मकान में धुआं उठने एवं आग लगने की आवाजे आने लगी। सारा गांव आग बुझाने अपने घर की तरफ दौड पडा। सभी दरवाजा खोलने की कोषिष में लगे थे मुझे सूचना मिलते ही मै भी तूफानी गति से घर पहुंचा। मम्मी को आवाज लगाई। मम्मी की दबी दबी दर्द भरी आवाज सुनाई दे रही थी जो थोडी देर में बंद हो गयी। बडी मुष्किल से जैसे तैसे उस लोहे के दरवाजे को तोड पाये , पूरा मकान काला हो गया था। मॉ की हृदय विदारक दषा देखकर मेरी चींख निकल गई ओर वहीं बेसुध हो गया। सब कुछ खत्म हो गया था। उनकी अच्छाइयां सबकी जुबान पर थीं , मजदूरी करके भी जिसके चेहरे पर हमेषां खुषी रहती। अपने परिवार की बहन बेटीयों को कभी खाली हाथ नही जाने देती , उनको जलपान कराकर खुषी से दस्तूर करती। कभी अपनी अल्प आमदनी को अपने उपर हावी नहीं होने दिया उस हिम्मत वाली मॉ के साथ ऐसा क्या हो गया! मैं आज तक समझ नहीं पाया। 

     अपने गमगीन पिता की आंखों में आये आंसू पोछते हुए नन्हा बालक भी विस्मीत हो देखता रह गया। अगले पल ही सम्हल कर बच्चें को सीख देते हुए प्रतीक ने कहा हमें अपने अतीत को नहीं भूलना चाहिये क्योंकि अतीत ही हमें सीख देता है ये हमारा बहुत बडा मार्गदर्षक है। विषम परिस्थितियों में भी आत्मबल नहीं खोना। आज मुझे ध्ंाधें में जो बरकत है। ये मॉ की ही देन है। बस कमी है तो मॉ के आंचल की छांव की। काष मॉ मुझ पर विष्वास कर लेती।   

 बृजनेहरू पाटीदार 

  जनकपुर नीमच