मुंह  में मूँग 

मालवी लोकोक्ति है  “मुण्डा में मूँग ओरईग्या  ” मतलब मुंह में मूँग भर लिये  और  न बोलने की नौटंकी कर  रहा है  l  एक चुप्पी को सौ सुख के जैसा माना गया है l हर युग में “चुप्पी ” वाले ने अपना स्वार्थ सिद्ध किया है l द्रोपदी के चीरहरण  पर  ,राम के वनवास पर ,देश  में घोटालों  पर  मीडिया और  जवाबदार की,हर मुद्दे पर जनता की और  सास बहू के  गृह के  युद्ध पर पति की चुप्पी घटना का रुख ही  मोड़ देती है l  चुप्पियाँ उदाहरण बनकर हर युग में इठलाती है और मुंह चिढ़ाती है l आने वाली पीढ़ियों के सामने प्रश्न खड़े रहते है l अगर चुप्पी न होती ? तो इतिहास कुछ अलग ही होता l चुप्पियों से सीख लेने की बजाय ,चुप्पियों का हथियार की तरह इस्तेमाल आज भी हो रहा है और लगता है होता रहेगा ?  इस विषय पर  मित्रों से चकल्लस चल रही थी कि बैंक वाले  बाबू  भी इसमें शामिल हो गये l उनके आते ही एक मित्र  जो चुप्पी लगाए बैठे थे  कि  बैंक वाले बाबू को देखकर उन्हें घोटालों की याद आ गयी और गुमसुम सा  रहने वाला मित्र आज अचानक जागृत हो कर  बैंकों के प्रति अपनी भड़ास निकालने लगा ,और प्रश्नों की बौछार कर दी l बैंक हम जैसे सामान्य लोगों को बाईक  लोन लेने में चपल्ल घिसवा देता हो और एक किश्त चूक जाओ तो ओवर ड्यू   की सूचना भेजने में देर नहीं करते l क्यों ?करोड़ो के घोटालों करने वाले अतिविशिष्ट ग्राहक माने जाते है l उन्होंने बैंक  सिस्टम को ही हाइजेक  कर  लिया है l  बैंक बाबू कहने लगे साहब जी हम क्या करें? हमारे हाथ कुछ नहीं है सब मैनेजरों के हाथ रहता है l  बाबू अपने तेवर दिखा रहे थे  कहने लगे घोटालों का क्या ? चलते रहते है थोड़े दिन  गर्म रहते है और फिर सब भूल जाते है l घोटालो की आग  जल्दी ठंडी हो जाती है और फिर नए  घोटालों की  गर्म हो जाती है l अभी कुछ वर्षों में  हमारी  बैंक में मन्नू और नन्नू दो बैंक के मैनेजर आये ,दोनों के समय बैंक में घोटालों की बात हुई दोनों की चुप्पी देखने लायक थी ,जब चुप्पी रखने में  एक से बढ़ कर एक हो तब  समझ में आया कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर चुप रह कर खाओ और खाने दो का फार्मूला होता हैं जो मेरे  भेजे में घुसा l जांच पर जाँच चलती रहती है और जवाबदार  चुप्पी बनाकर अपना उल्लू  सीधा करते रहते है l  मैंने पूछा  घोटाले करने  वाले क्यों नहीं डरते ?बैंक बाबू कहने लगे कि साहब बड़े -बड़े और अच्छे अच्छे इसमें लगे रहते है ऊपर से वरद हस्त जो रहता है l मेरा एक और प्रश्न है कि  जांच के बाद क्या होता है  ?  आम जनता को पता ही नहीं चलता है कि दोषी कौन था ?और सजा क्या हुई ? तो बैंक वाले बाबू कहने लगे कि अंधेर सिस्टम में चौपट अधिकारी सब  घालमेल है  l कभी किसी लोन आवेदन पर हिम्मत कर कुछ प्रश्न पूछ लो तो जवाब मिलता है “हेड ऑफिस का आदेश है l हेड ऑफिस का आदेश शिरोधार्य करना ही मैनेजर का अंतिम लक्ष्य  रहता है l जब तक ऐसा चलता रहेगा घोटाले दर घोटाले  परत  दर परत चलते रहेंगे l और आप और हम एक चुप्पी सौ सुख का अनुसरण करते हुए मुंह में मूँग डालकर ,टुकुर -टुकुर देखने के अलावा कर  भी क्या सकते हैl

संजय जोशी ” सजग “