कविता नेपाल से – हम है मानव प्रेमी 

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आखिर हम भी

तुम्हारे 

अदृश्य बिछाये हुये जाल में 

फँस ही गये 

मोह रुपी भ्रम में 

पड ही गये

कष्ट रुपी प्रेम में 

जकड ही गये, 

हाँ, क्यूँ नहीं

हमें पता था कि 

तुम अवश्य एक दिन

हमें भी फँसाओगे 

अपने कुटिलता में

अपने अदृश्य फंदों में 

हमें भी झकड़ोगे

कोरोना नामक भय से 

हमें भी भयभीत करोगे 

खूले वातावरण में 

विचरण जो करते हो!

क्यूँकि तुम हुये 

मानव! द्रोही 

और हम है मानव प्रेमी

तुम मानव से छल करके

उसके तन में प्रवेश कर 

दु:ख देने लगते हो। 

और हम मानव सहयोगी

उनके सहयोग के लिये

एक दूसरे से प्रेम करते है 

स्नेह बढाते है।

उसी बीच तुम कोविड

उठा लेते हो फायदा 

स्पर्शता का

और कर जाते हो प्रवेश

हमारे अन्तरतन में

चोरों की भाँतिफ़ 

कायरता दिखाकर  

सताने लगते हो महिनों तक

चलता रहता है तकरार 

तुम्हारे – हमारे बीच की दुश्मनी

कष्ट देना तुम्हारे नियति में है

और कष्ट सहना 

हम मानवों का स्वभाव,

हर जंग से लड़ना 

और लड़कर जीतना

है मानवों का स्वभाव

एवं 

मनुष्यों से हारना  है 

तुम्हारे कुविरों का परिणाम !

– संगीता ठाकुर

काठमाण्डौँ, नेपाल