हिम्मत रखता हूँ”

बूझा-बूझा सा हैं दिल मेरा

फिर भी मन की बात रखता हूँ,

थका मुसाफिर न समझना

मीलों चलने की हिम्मत रखता हूँ।

चल दिये राहों में छोड़कर जो

उनकी यादें हर वक्त रखता हूँ

मुक्कमल न था ये सफर फिर भी

सीने मे अपने  जज्बात रखता हूँ।

मीलों चलने की हिम्मत रखता हूँ।

कभी वादा था चलेंगे साथ मिलकर

उन वादों की आज भी कीमत रखता हूँ,

दुआ ही अब साथ हैं मेरे

इसलिए तो अब नजाकत रखता हूँ।

मीलों चलने की हिम्मत रखता हूँ।।

किस कसूर की सजा मालूम नहीं

दिल न टूटे बड़ी हिफाजत रखता हूँ,

मेरा ‘मैं’ मुसाफिर की तरह दरबदर न भटके

अपनी दुआओं से सबको सलामात रखता हूँ।

मीलों चलने की हिम्मत रखता हूँ।।

संजय श्रीवास्तव

अनीसाबाद

पटना।