रोका किसने है तुम्हें
चाहतों के सफर में
अपने कद्रदानों की
आज़माइश तो कर लेते
आवारा रास्तों में इक बार !
रोका किसने है तुम्हें
वफाओं का बदला
वफा का करने में
सब्र हुआ नहीं खत्म
जमाने की ज़फाओं से अभी !
रोका किसने है तुम्हें
इरादे सितम करने के
जिन्दगी पर हमारे
जख्मों का दर्द
अभी थमा सा ही है !
रोका किसने है तुम्हें
वादों की परवानगी और
इश्क़ में इजहार करने में
क़यामत से क़यामत का
इन्तजार अब होता नहीं है !
मुनीष भाटिया
178, सेक्टर-2, कुरुक्षेत्र-हरियाणा