एक अचंभा हमने देखा
दिन को रात बताते देखा
कल जिनको गरियाते थे
उनसे ही गठबंधन देखा
राजनीति के चक्रव्यूह में
सारा गड़बड़ झाला देखा
सड़कों के गहरे खड्डों पर
बस पैबंद लगाते देखा
जाल सुनहरा बिछा रहे हैं
चुनावी रंगत दिखा रहे हैं
अहंकार में कल अकड़े थे
विनत भाव से झुकते देखा
मीठी मीठी बातें करते
चतुर शिकारी आते देखा
कल तक जिनके दर्शन दुर्लभ
कुटिया कुटिया जाते देखा
जाल सुनहरा बिछा रहे हैं
चुनावी रंगत दिखा रहे हैं।
राजनीति के दांव पेंच में
शतरंजी चाल चलाते देखा
जनता को धोखा देने की
नीति वही दुहराते देखा
ढपोरशंख की सुनी कथा को
आज प्रत्यक्ष सच होते देखा
जाल सुनहरा बिछा रहे हैं
चुनावी रंगत दिखा रहे हैं।
निर्मला जोशी’ निर्मल’
हलद्वानी’ देवभूमि
उत्तराखंड ।