*  आख़िर  !  कब   तक …….. ?  *

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अपने मुंह मियां मिट्ठू –

आख़िर !

कब तक बने रहोगे ?

देश से ज़ियादा –

आपको सत्ता प्यारी है ।

कुर्सी से ही केवल –

आपकी सच्ची यारी है ।

धार की पकड़कर उंगली –

आख़िर !

कब तक साथ बहोगे ?

आपने जितने पात झड़ाए –

पेड़ उतने हरे हुए ।

तोड़े जिनके घर आपने –

महल उनके खड़े हुए ।

हवामहल में चराग़ बन  –

आख़िर !

कब तक अखंड जलोगे ?

वसन जितने स्वच्छ आपके –

चेहरे उतने हैं घिनौने ।

सदा अवाम से खेला आपने –

माटी के जान खिलौने ।

बीन को देख सांप सरीखे –

आख़िर !

कब तक झूम , नचोगे ?

पानी उतर चुका कभी का –

पानीदार आप रहे नहीं ।

जिसका अनुसरण कोई करे –

उस पथ आप चले नहीं ।

आईनों की ओट ले – लेकर –

आख़िर !

कब तक आप छुपोगे ?

+ अशोक ‘ आनन ‘ +

   मक्सी