रेत सा वक्त हाथों से निकलता जा रहा।
एक-एक लम्हा यूं ही बस गुजरता जा रहा।
वक्त की तपिश दिन ब दिन बढ़ती जा रही।
बारिशों का इंतजार अब थमता जा रहा।
सांसों का सफर भी अब थकता जा रहा।
मुसाफिर फिर भी आगे बढ़ता जा रहा।
उनींदी सी आंखों में सब कुछ तो है धूमिल।
सांसो को रोके अब किन तारों की झिलमिल।
अजीब सी पहेलियां सुलझाता जा रहा।
अनजाने में अपनी उलझने बढ़ाता जा रहा।
नीरवता के आंगन में खुद से लड़ता जा रहा।
जख्मों पर अपने खुद मरहम रखता जा रहा।
अजब शक्ल इख्तियार कर ली तूने जिंदगी।
नही बची करने को कोई अब तो कोई बंदगी।
सफर अंतिम दौर की तरफ बढ़ता जा रहा।
कुछ सांसों के लिए खुद से लड़ता जा रहा।
रेत सा वक्त हाथों से निकलता जा रहा।
एक-एक लम्हा यूं ही बस गुजरता जा रहा।
वीनस जैन
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश