“आईना तू झूठा है”

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ऐ आईना,

तू भी कितना झूठा है।

या तो मुझसे दुश्मनी है,

या मुझसे रूठा है।

ऐ आईना….

जब भी मैं,खुद को,

तुम्हारे सामने पाता हूँ,

हर बार,

जी हां हर बार,

खुद को वृद्ध पाता हूँ।

तुम सफेद दिखा देते हो,

मेरे बाल को,

झुर्रियों से भरे,

दिखाते हो मेरे गाल को।

आंखों के इर्द गिर्द,

काले-काले निशान दिखाते हो,

मेरे उन्नत ललाट पर,

भी तुम थकान दिखाते हो।

पर सामने वाले मुझे,

हमेशा गतिमान कहते हैं।

कुछ लोग तो मुझे,

चीर नौजवान कहते हैं।

पर देखने जब भी,

तुम्हारे सामने आया हूँ।

उन सबकी बातों को ही,

मैं झूठा पाया हूँ।

सोचने लगता हूँ,कि

वो सब झूठे हैं, या,

तू झूठा है।

ऐ आईना……….

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जीवन चन्द्राकर”लाल”

       बोरसी 52 दुर्ग(छत्तीसगढ़)