जरा आँख में भर लो पानी…

इन्दौर। 92 वर्षीया स्वर कोकिला, नाईटएंगल, स्वर साम्रज्ञी के नाम से जानी जाने वाली, भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित लता दीनानाथ मंगेशकर ने 6 फरवरी 2022 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल मे अंतिम सांस ली, उनका जाना संगीत की दुनिया मे एक युग का अंत है, इस दुखद समाचार से भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व स्तब्ध है।
28 सितंबर, 1929 को इन्दौर के एक मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में जन्मी हेमा, जो बाद लता के नाम से जानी गई को नम आंखो से श्रद्धांजलि देते हुए उनके जीवन के कुछ विशेष पहलुओं पर नजर डालते है उनके पिता दीनानाथ जी का असल उपनाम हार्डिकर था, वे गोवा के मंगेशी गांव में रहते थे और वहीं पैदा हुए थे, अतः उन्होंने अपना उपनाम मंगेशकर रख लिया था, लता मंगेशकर बचपन में अधिक पढ़ाई नहीं कर सकीं थीं लेकिन दुनिया की 6 बड़ी यूनिवर्सिटीज से उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री मिली है। इंग्लैंड के लॉर्ड स्टेडियम में उनके लिए एक परमानेंट गैलरी रिजर्व रहती थी, जहां बैठकर वो अपना पसंदीदा खेल क्रिकेट देख सकती थी, 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति देने वाली वो प्रथम भारतीय थीं। वैसे तो इस महान गायिका को उनके सम्पूर्ण जीवन काल मे अनेकों पुरस्कारों और अलंकारणों से नवाजा गया था लेकिन वो एक ऐसी महान शख्सियत थी जिनके अपने जीवन काल में उनके नाम से अन्य कलाकारों को पुरस्कार दिये जाते थे।
लताजी ने अपनी गायकी की लंबी यात्रा मे लगभग 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने गाये हैं, उनके पेशेवर गायन की शुरुआत 1943 में मराठी फिल्म गजभाऊ के ‘माता एक सपूत की दुन‍िया बदल दे तू…’ गाने के साथ हुई थी। 1948 में आई फ‍िल्‍म ‘मजबूर’ में गाया गाना ‘द‍िल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का न छोड़ा…’ का स्वरों की दुनिया मे लताजी को स्थापित करने मे बड़ा योगदान रहा। 1949 में बनी फिल्म महल मे गाये ‘आयेगा आने वाला…’ गीत से उनकी अद्भुत आवाज का जादू जो लोगों के सर चढ़ा तो आज तक नहीं उतरा और ना कभी उतरेगा। वैसे तो उनको गायकी के क्षेत्र मे स्थापित करने मे कई लोगों का योगदान रहा है लेकिन अपने 84वें जन्मदिन पर लताजी ने एक इंटरव्‍यू में कहा था कि गुलाम हैदर उनके गाडफादर थे। उन्‍होंने इस दौरान बताया था कि हैदर पहले संगीत निर्देशक थे जिन्होंने उनकी आवाज पर विश्‍वास जताया था।
उनके निधन पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा उनको खोने की पीड़ा शब्दों से परे है, बेहद दयालु और देखभाल करने वाली लता दीदी हमें छोड़कर चली गई हैं। वह हमारे देश में एक खालीपन छोड़ गई है जिसे भरा नहीं जा सकता। आने वाली पीढ़ियां उन्हें भारतीय संस्कृति के एक दिग्गज के रूप में याद रखेंगी, जिनकी सुरीली आवाज में लोगों को मंत्रमुग्ध करने की अद्वितीय क्षमता थी।
चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया की स्वर साम्राज्ञी का अपना निजी जीवन बेहद सादा सरल रहा है, वो बेहद संकोची स्वभाव की थी, उनके जीवन से जुड़े कई पहलू लोगों के बीच रहस्य की तरह ही रहे है। बहुत कम लोगों को पता है कि उनको YSL PERIS ROSES नाम का परफ्यूम बहुत पपसंद था, हीरों से उन्हे दीवानगी की हद तक प्यार था उनके परिचित बताते है कि वो जहां भी जाती थी हीरे खरीद लाती थी। एक बार मंच पर गाने के लिए उन्हें ₹25 मिले थे जिसे वो अपने जीवन की पहली कमाई मानती थी, वो बालीवुड की पहली ऐसी गायिका थी जिन्हे उनके गाये गानों पर रॉयल्टी मिलती थी। लता दीदी 22 नवंबर 1999 से 21 नवंबर 2005 तक 6 साल के लिए राज्यसभा सदस्य भी रहीं, लेकिन लताजी का मानना था कि संसद जैसी जगह के लिए वो एक सही पसंद नहीं हैं, उनका कर्मक्षेत्र तो सदैव गायन ही रहा और वो उनके लिए पूजा का दर्जा रखता था, उनके जानने वाले बताते हैं जिस तरह ईश्वर की पूजा करते समय एचएम नंगे पैर होते है उसी तरह लताजी नंगे पांव ही गायन का कार्य करती थी यहां तक कि वह स्टूडियो में भी जब अपने गाने को रिकॉर्ड करती थी तब भी वह नंगे पांव ही होती थी। लताजी इतने शांत और सौम्य स्वभाव की थी कि उनके साथ किसी विवाद का होना ही विवादास्पद लगता है। फिर भी लता जी भी थीं तो एक इंसान ही और एक इंसान के साथ कुछ विवाद स्वाभाविक रूप से जुड़ जाते है, उनके नाम के साथ भी कुछ छोटे-मोटे विवाद जुड़े, किंतु उन्होंने कभी भी स्वयं उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि यह मुद्दे उन पर कभी हावी नहीं हो पाए। कुछ समय बाद अपने आप वह मुद्दे शांत हो जाते और इस प्रकार कोई भी विवाद उनको छू भी नहीं पाया। लता मंगेशकर अक्सर कहा करती थीं। मैंने हमेशा जीवन से प्यार किया है, चाहे मेरी यात्रा में कितने भी उतार-चढ़ाव आए हों।
उनके निजी जीवन से जुड़ा एक रोचक किस्सा सुनाकर इस लेख को समाप्त करता हूँ चालीस के दशक में वें मालवाड़ लोकल ट्रेन से जाया करती थी और उसके आगे मुंबई स्टूडियो पैदल ही निकल जाया करती थी, अक्सर रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिलता जो उन्हें देखकर कभी हंसता, कभी अपनी छड़ी घुमाता और अजीब हरकतें करता था जैसे कोई मदारी या निर्देशक करता है, उस व्यक्ति की वो हरकतें लताजी को पसंद नहीं आती थी एक दिन उस व्यक्ति को स्टुडियो में देखकर लताजी आश्चर्यचकित रह गई उनको लगा कि मेरा पीछा करते हुए यह यहां तक आ गया, उन्होंने खेमचंद प्रकाशजी से कहा – चाचा यह लड़का मेरा रोज पीछा करता है, मुझे देख कर हंसता है और आज यहा तक आ गया, खेमचंद जोर से हंसे और कहा अरे यह अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर है यह भी इसी फिल्म के गाने को रिकॉर्ड करने आया है। लताजी के जाने के बाद उनका गाया यह गीत बहुत याद आयेगा ‘मेरी आवाज ही मेरी पहचान है…’!
लेखक राजकुमार जैन (स्वतंत्र विचारक)