सपने मुकर गये,
अपने गुजर गये।
मगर कामयाबी की,
इम्तिहान बाकी है
मौसम बदल गये,
तम घोर कर गये।
दीपकलिका की माला,
झमकाना बाकी है।
आंधी सी लहर आये,
यादों की कहर ढाये।
काटों भरी डगर में,
ठहराव बाकी है।
सागर सी हिय लिये,
क्षितिज अंनत छुये।
अम्बक के धाराओं में,
अरमान बाकी है।
ज्योति नव्या श्री
रामगढ़, झारखंड