हाँ, मैं नाराज़ हूँ तुम से… ज़िन्दगी

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*ऐ ज़िन्दगी!*

हाँ, मैं तुम से नाराज़ हूँ

हाँ, मैं तुम से खफा भी हूँ

दिया इतना ज़ख्म कि

हर समय परेशान सी हो गई हूँ…..

किया मैंने ऐसी कौनसी खता?

भुगताना पड़ रहा हैं हर दफ़ा

कैसे कैसों पर रहम हो खाते

क्या हम तुमको नज़र भी नहीं आते

तुम से रूठ गई हूँ

अंदर-ही-अंदर टूट गई हूँ

संभलने की कोशिश हर बार हूँ करती

उठने से पहले ही कई बार गिराई गई हूँ…

अपने ही मुझे धोखा दे गए 

साजिश रच मिट्टी में मिला गए 

जीने की आस छोड़ गई हूँ

खुद से ही रूठ गई हूँ..।.

एक पल तो मुझ पर तरस खा जा

झूठ ही सही  मुझ पर बरसा जा

उम्मीद अब किसी से हैं नहीं

इंतजार वक़्त का ही कर रही

चैन की नींद सोना हैं मुझ को

पल भर के लिए सुकून चाहिए मुझ को 

खुद से लड़ते लड़ते थक गई हूँ

ज़िन्दगी की उलझनों से पक गई हूँ..

 *हाँ, मैं तुमसे नाराज़ हूँ…..ज़िन्दगी!!!* 

 *संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक*