चुनाव परिणाम के बाद योगी के सत्ता में वापस आने पर टूट जाएंगें ये सभी मिथक योगी का नाम इतिहास में होगा दर्ज

लखनऊ । उत्तरप्रदेश में 7 चरणों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे गुरुवार को आने हैं, लेकिन उससे पहले एग्जिट पोल से सत्ता की तस्वीर साफ होती दिख रही है। एग्जिट पोल में योगी की अगुवाई में बीजेपी दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव बहुमत से बहुत दूर दिख रहे हैं। एग्जिट पोल के आंकड़े अगर चुनावी नतीजे में तब्दील होते हैं, तब यूपी में कई सियासी धारणाएं टूट जाएगी। एग्जिट पोल के मुताबिक, यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 46 फीसदी वोटों के साथ 288 से 326 सीटें जीतती दिख रही हैं। सपा 36 फीसदी वोटों के साथ 71 से 101 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है।वहीं, बसपा और कांग्रेस का सफाया होता नजर आ रहा है और दोनों ही पार्टियां दहाई का अंक नहीं छू पा रही हैं। यही आंकड़े अगर 10 मार्च को चुनावी नतीजों में तब्दील होकर बीजेपी सत्ता में वापसी करती है, तब योगी इतिहास रच देने वाले हैं। इसके बाद सबकी जिज्ञासा यही हैं, कि तमाम मिथक तोड़ रहे योगी बतौर मुख्यमंत्री पांच साल चली भाजपा की सरकार की वापसी कराने में सफल होते हैं या नहीं। यूपी में कोई भी सीएम आजादी के बाद से पांच साल का कार्यकाल समाप्त कर लगातार दूसरी बार सत्ता के सिंहासन पर काबिज नहीं हो सका है।
पोल के आंकड़े अगर नतीजे में बदलते हैं,तब सीएम योगी आदित्यनाथ ऐसा करने वाले सूबे के पहले मुख्यमंत्री बन जाएंगे। उत्तर प्रदेश में किसी विधानसभा का निर्धारित पांच साल का कार्यकाल पूरा कर फिर अपने दल की सीएम योगी सत्ता में वापसी कराएंगे। 1985 के बाद 37 वर्षों में यह पहली बार होगा कि कोई पार्टी लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए वापसी करेगी। वहीं, चुनाव नतीजे के बाद बीजेपी नेतृत्व यदि योगी आदित्यनाथ को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करता है,तब वे भाजपा के पहले नेता हो जाएंगे जो लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। साथ ही सूबे में एक पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेने वाले भी पहले व्यक्ति बन जाएंगे। यूपी में अभी तक कोई भी सीएम सत्ता में रहते हुए लगातार दूसरी बार सीएम नहीं बन सका।
यूपी की सियासत में एक मिथक यह भी माना जाता है कि नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित नहीं रहती है, और पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं होती। इस कारण कई मुख्यमंत्री नोएडा आने से बचते रहे। विकाय योजना का उद्घाटन या शिलान्यास को लेकर नोएडा जाने की जरूरत पड़ती है,तब कुछ मुख्यमंत्रियों ने लखनऊ या फिर किसी अन्य स्थान से ही इस काम को पूरा किया। सूबे में योगी ही मुख्यमंत्री हैं, जो नोएडा आने के भय के बजाय वहां कई बार पहुंचे। इस तरह 5 साल मुख्यमंत्री रहते हुए 40 बार नोएडा आकर उन्होंने एक मिथक तोड़ दिया है, लेकिन अब देखना यह है कि सीएम बनकर दूसरा मिथक भी तोड़ पाते हैं या नहीं।
उत्तरप्रदेश में डेढ़ दशक से जो भी नेता सीएम बना है, वहां विधानसभा के बजाय विधान परिषद का सदस्य रहा है। मायावती से लेकर अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ तक सभी मुख्यमंत्री विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। योगी पहले नेता हैं, जो बीते डेढ़ दशक में बतौर मुख्यमंत्री विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं,तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी इस बार विधानसभा चुनाव में उतरे हैं।संयोग यह भी है कि योगी विधानसभा का पहला चुनाव लड़ रहे हैं,तब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि बतौर मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को हरा देने वाले गोरखपुर का मुख्यमंत्री को पटखनी देने का मिथक किस तरह टूटता है।