हम जीना सिखाते हैं

भूलाकर सब गिले-शिकवे, प्रेम का पर्व मनाते हैं।

जलाकर होली के संग द्वेष,सबको गले लगाते हैं।

मुझे वो एक रंग ही दे, जिसमें हो अपनापन प्यार,

जिद्दी मन होगा चंचल ,महफिल फिर सजाते हैं।

नफरतों के बाजार में ,प्यार की पेडी सजाते हैं।

बिछाकर राह में पलकें,मीत को पास बुलाते हैं।

अपने स्वार्थ के खातिर जहां में फैलाई नफरत,

आज उन ठेकेदारों  को, पाठ हम भी पढ़ाते हैं।

जिंदगी बेरंग है जिनकी, हौसला उनमें जगाते हैं।

टूट कर ना बिखरो तुम,चलो अपनों से मिलाते हैं।

होगी हर कदम खुशियां मन में रखना तू विश्वास,

प्यार के रंग से भर पिचकारी, मन मैल धुलाते है।

झूम लो मस्ती में थोड़ा,जिंदगी राज समझाते हैं।

जिंदगी यादों की पुस्तक बने, बनने से बचाते हैं।

सूर्य का तेज भी फीका पड़े, जब वक्त आता है,

कट तो जाएगी ऐसे -वैसे, हम जीना सिखाते हैं।

वीणा वैष्णव रागिनी

    राजसमंद

    राजस्थान